ये जो सपने है,
उन्हें बुनने का अलग मज़ा है,
ये कभी बिखरते है,
कभी चिड़चिड़े कर देते है,
तो कभी उत्साह से भी भरते है,
ये उतार चढ़ाव का एक पहिया है,
जिसे धक्का हम खुद देते है,
इन्हें हम सिर्फ सोचकर नहीं पाते,
मेहनत कर पाना चाहते है,
ये जो सपने है न सपने...
उन्हें धूमिल होने से बचाना है तो....
सपनों की दुनिया से उठकर मेहनत करना जरुरी है।
$देवेन्द्र गोरे$
उन्हें बुनने का अलग मज़ा है,
ये कभी बिखरते है,
कभी चिड़चिड़े कर देते है,
तो कभी उत्साह से भी भरते है,
ये उतार चढ़ाव का एक पहिया है,
जिसे धक्का हम खुद देते है,
इन्हें हम सिर्फ सोचकर नहीं पाते,
मेहनत कर पाना चाहते है,
ये जो सपने है न सपने...
उन्हें धूमिल होने से बचाना है तो....
सपनों की दुनिया से उठकर मेहनत करना जरुरी है।
$देवेन्द्र गोरे$