घर आये एक रिश्तेदार शादी का कार्ड लेकर ,
मान बढाये शादी में आकर ,
मैंने उठाया कार्ड जानबूझकर ,
उठाया कार्ड reception का टाइम देखा झांक झांक कर ,
लिखा था 8:30 onwards आपके आगमन तक ,
मन में लड्डू फूट रहे थे कब आएगा ये दिन ?
अगया वो दिन रुक रुक कर ,
हम तो बस खाने जाते है ,
चोइस बहुत है खाने की पर लाइन बड़ी है ,
जैसे सबके घर महंगाई आन पड़ी है ,
बुलाया था सपरिवार तो उठा लाये पूरा परिवार ,
घर की गैस बचाकर ,
Icecream के काउंटर पर भीड़ तो देखो ,
जैसे ढेर सारे हो vanila के अलावा फ्लेवर ,
stage पर दूल्हा दुल्हन भूके है ,
सोच रहे है घर अपने चले जाना थोडा खाना छोड़कर ,
लिफाफे ज्यादा है बोला दूल्हा gifts देखकर ,
और बहार निकलते वक़्त बोले ,
खाना बहुत है शानदार ,
शादी तो हम बहुत देखे है ,
पर ये थी हमेशा से थोड़ी हटकर !!!!
$देवेन्द्र गोरे $
--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से...... हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया......!!!
Monday, November 28, 2011
Monday, November 21, 2011
बस यही सोचता हूँ ।
1) सूबह होती है और
सोचता हूँ ,
हर रोज कूछ
नया खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
कि ,
बस यही सोचता हूँ ।
2)राह कोई आसान नही ,
फिर भी आसान राह
ढूंढता हूँ ,
मंजिल
मिलेगी या नही बस
यही खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
की ,
बस यही सोचता हूँ ।
3)जिन्दगी आज है कल
नही ,
यह मै भी जानता हूँ ,
सबको खूश
देखना चाहता हूँ ,
पर दिल की सूनू
या दिमाग की ,
बस यही सोचता हूँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $
सोचता हूँ ,
हर रोज कूछ
नया खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
कि ,
बस यही सोचता हूँ ।
2)राह कोई आसान नही ,
फिर भी आसान राह
ढूंढता हूँ ,
मंजिल
मिलेगी या नही बस
यही खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
की ,
बस यही सोचता हूँ ।
3)जिन्दगी आज है कल
नही ,
यह मै भी जानता हूँ ,
सबको खूश
देखना चाहता हूँ ,
पर दिल की सूनू
या दिमाग की ,
बस यही सोचता हूँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $
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