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Monday, November 21, 2011

बस यही सोचता हूँ ।

1) सूबह होती है और
सोचता हूँ ,
हर रोज कूछ
नया खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
कि ,
बस यही सोचता हूँ ।
2)राह कोई आसान नही ,
फिर भी आसान राह
ढूंढता हूँ ,
मंजिल
मिलेगी या नही बस
यही खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
की ,
बस यही सोचता हूँ ।
3)जिन्दगी आज है कल
नही ,
यह मै भी जानता हूँ ,
सबको खूश
देखना चाहता हूँ ,
पर दिल की सूनू
या दिमाग की ,
बस यही सोचता हूँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $

5 comments:

  1. क्या खूब पिरोया है जज्बातों को लफ्जों में,
    की तेरी तारीफ को अलफ़ाज़ भी नाकाफ़ी हैं|

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  2. KYA LIKHTE HO DG BAHUT UMDA HAI SHABDO KA KARWA TUMHARA........IN SHABDO KO YUHI SAJATE REHNA TUM.........TUMHARI KAVITAO SE HUMKO EK NAYI PRERNA MILEGI..

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  3. dhanyawaad babaji ab mere Alfaaj bhi kum pad raha hai kuch kehne se ... !!!! :)

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  4. @hitesh its myPleasure that you r liking my Poetry :) Thanx again :)

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