मैँ था गया सब्जी मंडी मे,
लेने गया था भीँडी रे,
नज़र मिली एक कडीँल से,
ये बात हूई इस ठंडी मे,
आगे बड़ा सौचा कुछ ओर ले,
दुकान वाला बोला लेलो साहब भीँडी ये,
याद आगयी वो कंडील रे,
नज़र उठाई उस मंडी मेँ,
ये बात हुई इस ठंडी मेँ,
आगे बड़ा दिखी गिलकी रे,
पुछा भाव थी महंगी रे,
वो उस ही दुकान आयी भींडी लेने,
दिल कि धड़कन बड़ गयी उस मंडी मेँ,
भींडी को कहते है LADY FINGER,
देख उसे मैँ हुआ SHIVER,
काँपा तो था मैँ उस ठंडी से,
पर कमाल की थी वो कंडील रे,
आगे बड़ा लिये अनार,
बस आया था एक विचार,
एक अनार सौ बिमार,
आँखे हुई दो से चार,
कमाल कि थी वो कंडील रे,
नज़रे मिली उस मंडी मेँ,
कमाल किया भीँडी ने,
ये बात है हुइ इस ठंडी मेँ ,
निकला घर बजी फोन कि घंटी,
देखा उसे पलट के एक बार,
मूस्कूराई मूझे देख मंडी मेँ,
दिल आगया उस भीँडी पे,
ये बात हूई इस ठंडी मेँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $
Very nice composition Gore ji....
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