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Sunday, February 17, 2013

मंज़िल मेरी फिर दूर नही ....!!!

मैं राही उन रास्तो का हूँ 
जिन पर मेरा हक़ नही 
एक सफर तेरे साथ हो तो 
मंज़िल मेरी फिर दूर नही

ख्वाबो को सच करने का
हौसला मुझमे नही
एक बार तु मेरा हौसला बनजा
मंज़िल मेरी फिर दूर नही

समंदर जितना है गहरा
उतना गहरा है मेरा प्यार
आ चल मेरी कश्ति बनजा
मंज़िल मेरी फिर दूर नही

आसमॉ की आशा हैं
पंख लगाकर उड्ना है
आ चल तू बनजा पंख मेरे
मंज़िल मेरी फिर दूर नही

एक सफर मैं साथ चलू
तेरे कदमो के बाद चलू
तेरी परछाई बान जाउ अगर
मंज़िल मेरी फिर दूर नही

-: देवेंद्र गोरे


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