आंखो मे कोई ख़्वाब सुनहरा
नहीं आता
इस झील पर अब कोई शक्स नहीं आता
बहुत दिनो से दिल मे तमन्नाए सजा राखी है
इस घर मे किसी का रिश्ता नहीं आता
मैं बस मे बैठा हुआ ये सोच रहा हू
इस दौर में आसानी से पैसा नहीं आता
वो मजहब का ज्ञान बाटने निकले है
जिन्हे अपने धर्म का कोई श्लोक नहीं आता
बस तुम्हारी मोहब्बत मे चला आया हू
यूँ सबके बुला लेने से ‘देवेंद्र’ नहीं आता
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