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Sunday, September 14, 2014

मैं हिन्दी हू


मैं किसी का नाम जो हू  
किसी के नफरत का पैगाम जो हू
मैं किसी का  सम्मान जो हू
उन नगमो का अल्फ़ाज़ जो हू
मैं किसी की बिंदी हू
मैं तुम्हारी हिन्दी हू

मैं शब्दो का एहसास जो हू
मैं दिल की आवाज़ जो हू
सुख-दुख का हर राग जो हू
खुशियो की एक आवाज़ जो हू
जोश का वो  अंगार जो हू
जिसमे लगे वो बिन्दु हू
मैं तुम्हारी हिन्दी हू


किताबों मे कही खोयी हू
 लिखने से कतराती हू
अब तो अंग्रेजी की बिंदी हू
आज भी गर्व की बिन्दी हू  
मैं तुम्हारी हिन्दी हू


 :- देवेंद्र गोरे 

Saturday, September 6, 2014

गज़ल - 2

आंखो मे कोई ख़्वाब  सुनहरा नहीं आता
इस झील पर अब कोई शक्स नहीं आता

बहुत दिनो से दिल मे तमन्नाए सजा राखी है
इस घर मे किसी का रिश्ता नहीं आता

मैं बस मे बैठा हुआ ये सोच रहा हू
इस दौर में आसानी से पैसा नहीं आता

वो मजहब का ज्ञान बाटने निकले है
जिन्हे अपने धर्म का कोई श्लोक नहीं आता

बस तुम्हारी मोहब्बत मे चला आया हू

यूँ सबके बुला लेने से देवेंद्र नहीं आता 


Saturday, August 9, 2014

स्कूल का रक्षाबंधन !



रक्षाबंधन आता हैं खुशियाँ लाता हैं,
भाई और बहन के प्यार को दर्शाता हैं,
पर ये स्तिथि घर पर होती थी,
स्कूल की रक्षाबंधन कहर बरपाती थी,

रक्षाबंधन करीब आते ही हर लड़का डरने लगता था,
रक्षाबंधन आने तक पल-पल अन्दर ही अन्दर मरने लगता था,
जिस लड़की को मन ही मन पसंद करते थे, हमसे दूर भागती थी ,
हाथ में लिए रक्षाबंधन, सपनो में आने लगती थी,

स्कूल में कर्फ्यू का सा माहौल होता था ,
लड़की के पास से गुज़र भर जाने से दिल रोता था ,
डरे सहमे लड़के रहते थे इसी आस में,
भगवान् इस बार बचा लो,  बहन बनाने से |

रक्षाबंधन से दो दिन पहले छुट्टी के बहाने स्कूल नहीं जाते थे ,
जो समझदार होते हैं वो स्कूल चले जाते थे,
जो आ जाते थे स्कूल,
वो नए नए भाई बन कर पछताते थे I
- 
                :-   देवेंद्र गोरे


Thursday, June 5, 2014

गज़ल ...!

हर मोड़ पर साथ दिया तुमने,य़े बदलाव क्यों है,
तुम ज़िन्दगी का मकसद ,फिर ये ठहराव क्यों है||

तलब रहती है अक्सर मिलने कि, ये दूरीया क्यों है ,
मिलते है हम अब भी अक्सर फिर ये अलगाव क्यों है||

उन्होने कहा कैसे हो तुम मैंने कहा तुम्हे फिक्र क्यों है ,
दिल में कहीं दुआओ का समुन्दर, लफ्ज़ो पर शिकायत क्यों है||

रिश्तो कि डोर इतनी कमजोर नहीं, फिर ये गांठ क्यों है,
प्यार का पैगाम लिये खड़ा हूं मैं, फिर ये खामोशी क्यों है ||

हमसे कोई पुछे ये चेहरे पर मुस्कान क्यों है,

और मैं मुस्कुराकर कह दूं ये प्यार क्यों है ||