--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से...... हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया......!!!
Sunday, May 20, 2012
Monday, May 7, 2012
मैँ मूसाफिर अकेला .............!!!
मैँ मूसाफिर अकेला मंज़िल ढूँढने चला था ,
जिस मंज़िल कि तलाश मेँ मैँ था वहा एक मुसाफिर और था,
एक आकांक्षा थी छूलूंगा आसमान
पर आसमां भी परिँदो से घिरा हुआ था ,
मैँ ठहरा सहमा क्या करु,
एक मुसाफिर का हाथ सामने आया ,
मैँने पुछा क्या मंज़िल मिलना आसान है?
मुसाफिर ने बताया ,
उड़ना तो हर परिँदे का काम है ,
किस पंछी को कहा जाना है,
परेशानीया करती मजबूर है,
तू मूड़ कर ना देख अगर कुछ हाथ ना लगे,
एक दिन तू आसमाँ मेँ उड़ता हूँआ अपने आप को पायेगा और नीचे लोग तूझे उड़ता देख खुश हो जायेँगे :-)
देवेन्द्र गोरे ।
जिस मंज़िल कि तलाश मेँ मैँ था वहा एक मुसाफिर और था,
एक आकांक्षा थी छूलूंगा आसमान
पर आसमां भी परिँदो से घिरा हुआ था ,
मैँ ठहरा सहमा क्या करु,
एक मुसाफिर का हाथ सामने आया ,
मैँने पुछा क्या मंज़िल मिलना आसान है?
मुसाफिर ने बताया ,
उड़ना तो हर परिँदे का काम है ,
किस पंछी को कहा जाना है,
परेशानीया करती मजबूर है,
तू मूड़ कर ना देख अगर कुछ हाथ ना लगे,
एक दिन तू आसमाँ मेँ उड़ता हूँआ अपने आप को पायेगा और नीचे लोग तूझे उड़ता देख खुश हो जायेँगे :-)
देवेन्द्र गोरे ।
Tuesday, April 10, 2012
तुम्हे देख खुद को है सीखा ....!!!
एक हाथ पकड़ कर चलना सीखा ,
जब आप काम करते मैंने देखा ,
प्यार से तुम एक कौर खिलाते ,
उस मुस्कान को मैंने देखा ,
कंधे पर बिठाकर रावन देखा ,
जिद्द कर के वो खिलौना ख़रीदा ,
आपने हर पल मुझको जीता ,
हर मुस्कान के पीछे एक दुःख,
आपने सहा मैंने देखा ,
पल में खुश होजाते है और पल बिखर जाते है ,
ज़िन्दगी की खुशियों में कही खो जाते है ,
वो लम्हा जब याद करा तो ,इतिहास का वो पन्ना देखा ,
हर राह पर आपका साथ रहे ,ये मेरी इच्छा आपकी इच्छा ,
हर घड़ी रहे आपका साथ ,
मैंने हर पल है कुछ सिखा ....... !!!!
Wednesday, February 15, 2012
Monday, February 13, 2012
Friday, February 3, 2012
चल चला चल ,,,,,, !!!
१ ) जिस राह को तुने चुन लिया ,
उस राह पर तू चलता चल ,
न देख मुड़कर पीछे तू ,
बस चलना है तो चलता चल ........ !!
२ ) मुश्किलें तुझे रोकेंगी ,
तू लांग लेना मुश्किलों को ,
डरना नहीं तू मुश्किल से,
बस चलता है तो चलता चल ......... !!
३ ) जो ख्वाब तुने देखे है ,
उन ख्वाव को पूरा करता चल ,
न राह देख किसी की तू ,
बस चलना है तो चलता चल ... !!
४ ) आलस्य न कर पाने की ,
जो निश्चय तुने ठान लिया ,
न याद कर तू बीता कल ,
बस चलना है तो चलता चल .... !!!
$देवेन्द्र गोरे $
उस राह पर तू चलता चल ,
न देख मुड़कर पीछे तू ,
बस चलना है तो चलता चल ........ !!
२ ) मुश्किलें तुझे रोकेंगी ,
तू लांग लेना मुश्किलों को ,
डरना नहीं तू मुश्किल से,
बस चलता है तो चलता चल ......... !!
३ ) जो ख्वाब तुने देखे है ,
उन ख्वाव को पूरा करता चल ,
न राह देख किसी की तू ,
बस चलना है तो चलता चल ... !!
४ ) आलस्य न कर पाने की ,
जो निश्चय तुने ठान लिया ,
न याद कर तू बीता कल ,
बस चलना है तो चलता चल .... !!!
$देवेन्द्र गोरे $
Tuesday, January 31, 2012
Thursday, January 5, 2012
कमाल कि भीँडी ................ !!!!
मैँ था गया सब्जी मंडी मे,
लेने गया था भीँडी रे,
नज़र मिली एक कडीँल से,
ये बात हूई इस ठंडी मे,
आगे बड़ा सौचा कुछ ओर ले,
दुकान वाला बोला लेलो साहब भीँडी ये,
याद आगयी वो कंडील रे,
नज़र उठाई उस मंडी मेँ,
ये बात हुई इस ठंडी मेँ,
आगे बड़ा दिखी गिलकी रे,
पुछा भाव थी महंगी रे,
वो उस ही दुकान आयी भींडी लेने,
दिल कि धड़कन बड़ गयी उस मंडी मेँ,
भींडी को कहते है LADY FINGER,
देख उसे मैँ हुआ SHIVER,
काँपा तो था मैँ उस ठंडी से,
पर कमाल की थी वो कंडील रे,
आगे बड़ा लिये अनार,
बस आया था एक विचार,
एक अनार सौ बिमार,
आँखे हुई दो से चार,
कमाल कि थी वो कंडील रे,
नज़रे मिली उस मंडी मेँ,
कमाल किया भीँडी ने,
ये बात है हुइ इस ठंडी मेँ ,
निकला घर बजी फोन कि घंटी,
देखा उसे पलट के एक बार,
मूस्कूराई मूझे देख मंडी मेँ,
दिल आगया उस भीँडी पे,
ये बात हूई इस ठंडी मेँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $
लेने गया था भीँडी रे,
नज़र मिली एक कडीँल से,
ये बात हूई इस ठंडी मे,
आगे बड़ा सौचा कुछ ओर ले,
दुकान वाला बोला लेलो साहब भीँडी ये,
याद आगयी वो कंडील रे,
नज़र उठाई उस मंडी मेँ,
ये बात हुई इस ठंडी मेँ,
आगे बड़ा दिखी गिलकी रे,
पुछा भाव थी महंगी रे,
वो उस ही दुकान आयी भींडी लेने,
दिल कि धड़कन बड़ गयी उस मंडी मेँ,
भींडी को कहते है LADY FINGER,
देख उसे मैँ हुआ SHIVER,
काँपा तो था मैँ उस ठंडी से,
पर कमाल की थी वो कंडील रे,
आगे बड़ा लिये अनार,
बस आया था एक विचार,
एक अनार सौ बिमार,
आँखे हुई दो से चार,
कमाल कि थी वो कंडील रे,
नज़रे मिली उस मंडी मेँ,
कमाल किया भीँडी ने,
ये बात है हुइ इस ठंडी मेँ ,
निकला घर बजी फोन कि घंटी,
देखा उसे पलट के एक बार,
मूस्कूराई मूझे देख मंडी मेँ,
दिल आगया उस भीँडी पे,
ये बात हूई इस ठंडी मेँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $
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