--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से...... हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया......!!!
Friday, December 9, 2011
फरियाद
जो न करीब उसकी याद सताए ,
हर पल रहती है उनकी याद ,
पर मिलने की बस एक फ़रियाद ............!!!
२) सोचा न था हम बीछ्ड़ेंगे कभी ,
पर यह तो है एक जीवन की कड़ी ,
जब जब आई है उनकी याद ,
पर मिलने की बस एक फरियाद.......... !!!
३) दिल में एक तमन्ना हे की हम भी कुछ है बन जाये ,
वो दिन तो आएगा पर सबको एक याद सताए ,
मिलकर करे उन बातो को याद ,
पर मिलने की बस एक फरियाद ...........!!!
$ देवेन्द्र गोरे $
Monday, November 28, 2011
शादी थोड़ी हटकर !
मान बढाये शादी में आकर ,
मैंने उठाया कार्ड जानबूझकर ,
उठाया कार्ड reception का टाइम देखा झांक झांक कर ,
लिखा था 8:30 onwards आपके आगमन तक ,
मन में लड्डू फूट रहे थे कब आएगा ये दिन ?
अगया वो दिन रुक रुक कर ,
हम तो बस खाने जाते है ,
चोइस बहुत है खाने की पर लाइन बड़ी है ,
जैसे सबके घर महंगाई आन पड़ी है ,
बुलाया था सपरिवार तो उठा लाये पूरा परिवार ,
घर की गैस बचाकर ,
Icecream के काउंटर पर भीड़ तो देखो ,
जैसे ढेर सारे हो vanila के अलावा फ्लेवर ,
stage पर दूल्हा दुल्हन भूके है ,
सोच रहे है घर अपने चले जाना थोडा खाना छोड़कर ,
लिफाफे ज्यादा है बोला दूल्हा gifts देखकर ,
और बहार निकलते वक़्त बोले ,
खाना बहुत है शानदार ,
शादी तो हम बहुत देखे है ,
पर ये थी हमेशा से थोड़ी हटकर !!!!
$देवेन्द्र गोरे $
Monday, November 21, 2011
बस यही सोचता हूँ ।
सोचता हूँ ,
हर रोज कूछ
नया खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
कि ,
बस यही सोचता हूँ ।
2)राह कोई आसान नही ,
फिर भी आसान राह
ढूंढता हूँ ,
मंजिल
मिलेगी या नही बस
यही खोजता हूँ ,
दिल की सूनू या दिमाग
की ,
बस यही सोचता हूँ ।
3)जिन्दगी आज है कल
नही ,
यह मै भी जानता हूँ ,
सबको खूश
देखना चाहता हूँ ,
पर दिल की सूनू
या दिमाग की ,
बस यही सोचता हूँ ।
$ देवेन्द्र गोरे $
Sunday, October 16, 2011
ज़िन्दगी एक कहानी है !
बहता हुआ पानी है,
इसे रोकना मनमानी है,
बह गए तो कहानी है ,
भूल न जाना मेरे साथी ज़िन्दगी एक कहानी है !
२) कर्म करे जा फल की चिंता मत कर ,
पा गया अगर मंजिल तो ,
ये भी सफलता की कहानी है ,
भूल न जाना मेरे साथी ज़िन्दगी एक कहानी है !
३) पत्थर चट्टान से जो टकराए ,
उसे मंजिल पास बुलाती है ,
जिसने मुकाम के लिए ज़ख्म न सहे हो ,
उसकी अलग कहानी है ,
भूल न जाना मेरे साथी ज़िन्दगी एक कहानी है !
४) पल भर में प्यार मिले ,
पल भर में अपमान मिले ,
ये भी तो जिंदगानी है ,
जिसने इसको सह लिया उसकी अलग कहानी है ,
भूल न जाना मेरे साथी ज़िन्दगी एक कहानी है !
५) सबसे अच्छा व्यवहार करो ,
खुशिया सबमे बाटते चलो ,
कल किसने देखा है ,
कहानी कभी ख़त्म तो होनी है,
भूल न जाना मेरे साथी ज़िन्दगी एक कहानी है !
$देवेन्द्र गोरे $
Tuesday, September 27, 2011
मेरी ज़िन्दगी मेरे दोस्त है !!!
पास उतने है नहीं पर साथ रहते है ,
क्या कहूं इनके लिए ,
मेरी ज़िन्दगी मेरे दोस्त है,
२-कब कहा कैसे कभी ,
बन गए हम दोस्त अच्छे ,
ये दोस्त नहीं कुछ और है ,
क्या कहूं इनके लिए ,
मेरी ज़िन्दगी मेरे दोस्त है ,
३- हर लाफ्फ्ड़ो से रहते अलग,
सबके अपने सपने है,
पूरा करना इनका मकसद ,
ख्वाब सबके नेक है,
क्या कहूं इनके लिए ,
मेरी ज़िन्दगी मेरे दोस्त है ,
४-भोपाल हो या देहरादून,
नोयडा हो या खड़कपुर ,
इंदौर हो या कोई शहर ,
चैन मिलता है सबको ,
वो शहर उज्जैन है ,
क्या कहूं इनके लिए ,
मेरी ज़िन्दगी मेरे दोस्त है ,
५- साथ रहेंगे जीवन भर ,
ये हम सबकी फ़रियाद है ,
ये दोस्ती न टूटे कभी ,
हर पल हम सब साथ रहे ,
क्या कहूं इनके लिए ,
मेरी ज़िन्दगी मेरे दोस्त है !!!
- देवेन्द्र गोरे
Friday, September 2, 2011
मैं क्या हूँ ?
या हर चेहरे का गम ,
हर किसी के लिए पहेली हूँ ,
या हर किसी का पल ,
हर किसी का दर्द हूँ ,
या हर किसी का फ़र्ज़ ,
हर किसी का क़र्ज़ हूँ ,
या हर किसी का अर्श ,
हर किसी का प्यार हूँ ,
या हर किसी का इंकार ,
हर किसी की चाह हूँ ,
या हर किसी की राह ,
हर किसी के लिए आग हूँ ,
या हर किसी की प्यास ,
हर समस्या का हल हूँ ,
या हर हल की समस्या ,
हर सवाल का जवाब हूँ ,
या हर जवाब का सवाल ,
हर किसी की सोच हूँ ,
या हर किसी पर बोझ ,
ये सवाल आपका भी होगा ,
मैं क्या हूँ , मैं क्या हूँ , मैं क्या हूँ ?
-देवेन्द्र गोरे !
Sunday, August 14, 2011
यह देश आज़ाद कहा है ?
१) १९४७ को देश आज़ाद हुआ है,
धन्य हो गए जिन्होंने आज़ाद किया है ,
पर जंग तो आज भी जारी है ,
यह देश आज़ाद कहा है ?
२) नेता तो आते जाते है,
प्रसिद्धी पा चले जाते है ,
युवाओ का मौका छीन लेते है ,
यह देश आज़ाद कहा है ?
३) कानून तो ढेर बने है ,
सजा तो कुछ ही पा सके है ,
गुनाह तो और बढ रहे है,
यह देश आज़ाद जहा है ?
४) प्रतिभा तो बहुत है इस देश में ।
पर पैसो की कमी है ,
गरीबी तो देश में छाई है ,
फिर ये देश आज़ाद कहा है ?
५) महंगाई इस कदर है देश में ,
गरीब के लिए छत तक नहीं है,
सरकार गरीबो का नहीं ,
अमीरों का सोचती है ,
यह देश आज़ाद कहा है ?
६) स्वर्ग प्रदेश (जम्मू) में जाना आसान है ,
जिनकी वजह से हम जा पाते है ,
हम उन्हें ही भूल जाते है ,
नम है आँखे उन शहीदों के लिए ,
जिनकी वजह से हम आज़ाद है !
जय हिंद !
Thursday, August 4, 2011
"OR PYAR HOGAYA"
1-Nazare mili pyar hogaya,
ye aaj ka nai purana hogaya,
facebook twitter ka zamana agaya,
2min chatting hui or pyar hogaya!
2-Cofee par bulana to aam hogaya,
khane par bulaya to banda tamam hogaya,
pitcure dikhana to aam hogaya,
mall ghumaya to pareshan hogaya!
3-ladke ne pita to hero hogaya,
ladke ne hasaya to kamaal hogaya,
ladke ne ghumaya to amir hogaya,
or kuch kar na paya to change hogaya!
4-khat ka tha zamana par SMS agaya,
din me sona or raat me jagna aam hogaya,
padai ka chorkar sabke haal puchte hai,
or kehte hai hume pyar hogaya!
5-manta hu pyar andha hota hai,
par ye bhi purana hogaya,
har kisi ka dil khula aasman hogaya,
or kehte hai hume pyar hogaya !
-Devendra Gore
Tuesday, August 2, 2011
Facebook @ part of life !
@ part of life !
Once upon a time in our life there was good morning, afternoon & night. But now there is only one fight that is social networking site(facebook) .
In each and everyone’s life the fight is only for book not for the cook that is facebook . When we wake up in the morning we don’t even thought of any one just pickup the phone to chek SMS & facebook account .
The common question always arrives in our mind that WHY? Why we do this ? but than suddenly strikes in our mind three things !
1) For own publicity?
2) For be in touch with friends & relatives ?
3) For time pass ?
In my point of view these three points are correct in their own way but they are having some advantage of it. They are increasing yourability or you can say in other words that opening the door of success if you use in a positive way.
“ think positive live positive
thinking negative result will be negative”
Now in your mind another question is striking that HOW?
Its so simple when some one ask you that what do you do ? than you answer I do this…….., I do that…….., my hobbies are this……. Etc.
Now come to the point If you are doing interesting work for your own , or your own thoughts you can share it with your world . So people should know about you that what special you are in yourself .
“The coal can be a diamond”
Now secondly we all want to be in touch with our loved once and relatives friends and share the lattest happening in life . The best use of this networking site.
The long distance relationship work here and the best way to be in touch !
The last & final point is the waste of time . Most of us are familiar with some criticism here because they feel addicted like cigarette or any other drug , but I personnaly feel that Facebook is better addiction than other harm full drugs.
Some of your colleague do not like to be always there on facebook every time. So another question arises in your mind WHAT? Should I do for this to pretend criticism ?
A famous quote is there “for every success you have to face some critics”
If you are moving towards the success than do face the critics and don’t afraid to face them. And emember one thing in life “what do you want in your is your desire you can achive it”
So at last I want to end up with a short quote but with a lot meaning its self
“do or die but don’t feel fly”
Monday, August 1, 2011
पल . . . . !
1)हर घड़ी कुछ याद आता है,
एक हल्की मूस्कान दे जाता है,
हम सोच भी नही पाते,
कि वो था बीता हूआ पल।
2)जब किसी से मिलते है,
तो याद आते है गुज़रे कल,
हम सोच . . . . . .पल।
3)हम आज को भूल जाते है,
पर याद रहता है वो कल,
हम सोच . . . . . .पल।
4)खूश रहना सबको पसन्द है,
पर दूख भी रहता है संग,
हम सोच . . . . . . पल।
5)वो पल दोबारा आये,
ये सोचते है हरदम,
पर हम सोच . . . . . पल।
(देवेन्द्र गोरे)
Sunday, May 22, 2011
"डायरी"
किसी की ख़ुशी ,
समझती है एक चीज ज़रा सी ,
है कुछ पन्नो की डायरी !
२) आज क्या हुआ ,
कल क्या होगा ,
याद दिलाती है चीज सारी ,
है कुछ पन्नो की डायरी !
३) लोग बदल जाते है ,
वो नहीं बदलती ,
हर पल साथ देती है ,
कुछ पन्नो की डायरी !
४) वक़्त गुज़र जाता है ,
पर वो वक़्त याद दिलाती ,
होती है कुछ लोगो की प्यारी ,
कुछ पन्नो की डायरी !
५) अगर अकेला महसूस लगे तो ,
लिखकर करलो बात सारी ,
हर पल साथ देगी तुमको ,
कुछ पन्नो की डायरी !!!!!!!!
-देवेन्द्र गोरे
Monday, May 2, 2011
ओसामा तू क्यों मर गया !!!!!!!
सारी दुनिया पर छा गया ,
युवाओ को नया काम सिखा गया ,
ओसामा तू क्यों मर गया !!!!
२) तेरा परिवार इतना बड़ा था ,
तू ये कैसे भूल गया ,
शर्म लाज सब खो दिया ,
ओसामा तू क्यों मर गया !!!
३) भ्रष्टाचार तो था विश्व में ,
एक तेरी कमी थी तू भी अगया ,
अब तो नेता भी दुखी होंगे ,
उनकी जेब खली कर गया,
ओसामा तू क्यों मर गया !!!
४) तेरी दाड़ी और अदा का जहाँ कायल था ,
एक हिन्दुस्तानी तुझपर फिल्म बना गया ,
तुझे एक पहचान दे गया ,
ओसामा तू क्यों मर गया !!!!
५) चल जो हुआ अच हुआ ,
सारा विश्व तुझसे आजाद हुआ,
अब तुझे जन्नत तो नसीब न हो ,
और ऊपर कहेगा हे अल्लाह !
मैं आतंकवादी को बन गया !!!!!
- देवेन्द्र गोरे
Tuesday, April 19, 2011
छलकती हलकी सी मुस्कान ,
धड़कन अगर है बड़ गयी हो तो ,
ये है सफलता की पहचान !!!!
२) पैसा नहीं इज्जत है गिनते ,
हर जगह कहलाते महान ,
जब अपनों में बदती हो शान,
तो ये है सफलता की पहचान !!!!
३) मन में एक हलचल सी रहती है ,
खुद ही नै कर पाते पहचान ,
अगर लगता हो जैसे पहुच गए हो आसमान ,
तो ये है सफलता की पहचान !!!!!!!!
४) माता - पिता के चेहरे पर ख़ुशी हो तो ,
पाने लगते है सब मुकाम ,
भूल गए उस संघर्ष को तो ,
बेकार है ये सब सफलता की पहचान !!!!!!!
- देवेन्द्र गोरे
Wednesday, April 13, 2011
गर्मी का मौसम
लू के थपेड़ो के साथ में, कमी पानी की, लाया है.
मक्खियाँ उडती फिरती, गंदगी का साया है,
रातों की नींद उड़ाने को, मच्छरों का राज आया है
जारी...
Tuesday, March 22, 2011
जीवन की आपाधापी में
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
पथ की पहचान !!!!!!!!! by Sir Harivansh Rai bachchan........
पुस्तकों में है नहीं
छापी गई इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जबानी
अनगिनत राही गए
इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी
यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी
पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
यह बुरा है या कि अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना
अब असंभव छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना
तू इसे अच्छा समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना
हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
है अनिश्चित किस जगह पर
सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुंदर मिलेंगे
किस जगह यात्रा खतम हो
जाएगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छू जाएँगे
मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
Tuesday, January 4, 2011
"किस्मत"
किस्मत तो खुद बनती है,
कर्म एसे न कर,
जिससे किस्मत पलटती है।
2-हाथ जो मौका आये अपनाले,
मौका खुद आकर तरसती है,
कर्म एसे न कर . . . .
3-खुद पर विश्वास इतना रख,
खुद मंज़िल पास आती है,
कर्म एसे न कर . . . .
4-आज नही तो कल सही,
मंज़िल ज़रूर मिलती है,
कर्म एसे न कर,
जिससे किस्मत पलटती है ।
$देवेन्द्र गोरे$